सोमवार, 22 अगस्त 2011

कबीर प्रोजेक्ट


           जीवन परिचय       (जन्म सन् १४४० ई॰-निधन सन् १५१८)
पूरा नाम
संत कबीरदास
अन्य नाम
कबीरा
जन्म
सन १४४० (लगभग)
जन्म भूमि
लहरतारा तालकाशी
मृत्यु
सन १५१८ (लगभग)
मृत्यु स्थान
मगहरउत्तर प्रदेश
अविभावक
नीरु और नीमा
पति/पत्नी
लोई
संतान
कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
कर्म भूमि
काशीबनारस
कर्म-क्षेत्र
समाज सुधारक कवि
मुख्य रचनाएँ
साखी, सबद और रमैनी
विषय
सामाजिक
भाषा
अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
शिक्षा
निरक्षर
नागरिकता
भारतीय
 ‘कबीर’ भक्ति आन्दोलन के एक उच्च कोटि के कवि, समाज सुधारक एवं संत माने जाते हैं.
संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे. वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ झलकती है. लोक कल्याण के हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था. कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था. कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी. समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है. 
जन्म: कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं. कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ.
कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुई. एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े.
जन्मस्थान: कबीर के जन्मस्थान के संबंध में तीन प्रकार के मतभेद हैं : मगहरकाशी और आजमगढ़ में बेलहरा गाँव.
कबीर का अधिकांश जीवन काशी में व्यतीत हुआ. वे काशी के जुलाहे के रूप में ही जाने जाते हैं. कई बार कबीरपंथियों का भी यही विश्वास है कि कबीर का जन्म काशी में हुआ. किंतु किसी प्रमाण के अभाव में निश्चयात्मकता अवश्य भंग होती है.
माता-पिता: कबीर के माता-पिता के विषय में भी एक राय निश्चित नहीं है. “नीमा और नीरुकी कोख से यह अनुपम ज्योति पैदा हुई थी, या लहर तालाब के समीप विधवा ब्राह्मणी की पाप-संतान के रुप में आकर यह पतितपावन हुए थे, ठीक तरह से कहा नहीं जा सकता है. कई मत यह है कि नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था. एक किवदंती के अनुसार कबीर को एक विधवा ब्राह्मणी का पुत्र बताया जाता है.
शिक्षा: कबीर बड़े होने लगे. कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे-अपनी अवस्था के बालकों से एकदम भिन्न रहते थे. कबीरदास की खेल में कोई रुचि नहीं थी. मदरसे भेजने लायक साधन पिता-माता के पास नहीं थे. जिसे हर दिन भोजन के लिए ही चिंता रहते हो, उस पिता के मन में कबीर को पढ़ाने का विचार भी न उठा होगा. यही कारण है कि वे किताबी विद्या प्राप्त न कर सके.
वैवाहिक जीवन: कबीर का विवाह वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या लोईके साथ हुआ था. कबीर को कमाल और कमाली नाम की दो संतान भी थी.
गुरु दीक्षा: उस समय काशी में रामानन्द नाम के संत बड़े उच्च कोटि के महापुरूष माने जाते थे. कबीर जी ने उनके आश्रम के मुख्य द्वार पर आकर विनती की: मुझे गुरुजी के दर्शन कराओ.” उस समय जात-पाँत का बड़ा आग्रह रहता था. और फिर काशी ! वहाँ पण्डितों और पाण्डे लोगों का अधिक प्रभाव था.
मृत्यु: कबीर ने काशी के पास मगहर में देह त्याग दी. ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया थाहिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से. इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा. बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने. मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया. मगहर में कबीर की समाधि है. जन्म की भाँति इनकी मृत्यु तिथि एवं घटना को लेकर भी मतभेद हैं किन्तु अधिकतर विद्वान उनकी मृत्यु संवत १५७५ विक्रमी (सन १५१८.) मानते हैं, लेकिन बाद के कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु १४४८ को मानते हैं.
                                                      साहित्यिक परिचय: कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे. उनकी कविता का एक-एक शब्द पाखंडियों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग व स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारियों को ललकारता हुआ आया और असत्य व अन्याय
की पोल खोल धज्जियाँ उडाता चला गया. कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी पलीता था. सत्य भी ऐसा जो
आज तक के परिवेश पर सवालिया निशान बन चोट भी करता है और खोट भी निकालता है.
कबीरदास की भाषा और शैली: कबीरदास ने बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है. भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था. वे वाणी के डिक्टेटर थे. जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है, उसे उसी रूप में कहलवा लियाबन गया है तो सीधेसीधे, नहीं दरेरा देकर. अत्यन्त सीधी भाषा में वे ऐसी चोट करते हैं कि खानेवाला केवल धूल झाड़ के चल देने के सिवा और कोई रास्ता नहीं पाता.
पंचमेल खिचड़ी भाषा: कबीर की रचनाओं में अनेक भाषाओँ के शब्द मिलते हैं यथा-अरबीफ़ारसीपंजाबी, बुन्देलखंडी, ब्रजभाषा, खड़ीबोली आदि के शब्द मिलते हैं इसलिए इनकी भाषा को पंचमेल खिचड़ीया सधुक्कड़ीभाषा कहा जाता है.
कबीरदास का भक्त रूप: कबीरदास का यह भक्त रूप ही उनका वास्तविक रूप है. भक्ति या भगवान के प्रति अहैतुक अनुराग की बात कहते समय उन्हें ऐसी बहुत सी बातें कहनी पड़ीं हैं जो भक्ति नहीं हैं. पर भक्ति के अनुभव करने में सहायक हैं. वाणी द्वारा उन्होंने उस निगूढ़ अनुभवैकगम्य तत्त्व की और इशारा किया है.
महान समाज सुधारक: कबीर ने ऐसी बहुत सी बातें कही हैं, जिनसे (अगर उपयोग किया जाए तो) समाजसुधार में सहायता मिल सकती है, पर इसलिए उनको समाजसुधारक समझना गलती है. वस्तुतः वे व्यक्तिगत साधना के प्रचारक थे. समष्टिवृत्ति उनके चित्त का स्वाभाविक धर्म नहीं था. वे व्यष्टिवादी थे. सर्वधर्म समन्सय के लिए जिस मजबूत आधार की जरूरत होती है वह वस्तु कबीर के पदों में सर्वत्र पाई जाती है, वह बात है भगवान के प्रति अहैतुक प्रेम और मनुष्य मात्र को उसके निर्विशिष्ट रूप में समान समझना. परन्तु आजकल सर्वधर्म समन्वय से जिस प्रकार का भाव लिया जाता है, वह कबीर में एकदम नहीं था.
सभी धर्मों के बाह्य आचारों और अन्तर संस्कारों में कुछ न कुछ विशेष देखना और सब आचारों, संस्कारों के प्रति सम्मान की दृष्टि उत्पन्न करना ही यह भाव है. कबीर इनके कठोर विरोधी थे. उन्हें अर्थहीन आचार पसन्द नहीं थे, चाहे वे बड़े से बड़े आचार्य या पैगम्बर के ही प्रवर्त्तित हों या उच्च से उच्च समझी जाने वाली धर्म पुस्तक से उपदिष्ट हों. बाह्याचार की निरर्थक और संस्कारों की विचारहीन गुलामी कबीर को पसन्द नहीं थी. वे इनसे मुक्त मनुष्यता को ही प्रेमभक्ति का पात्र मानते थे. धर्मगत विशेषताओं के प्रति सहनशीलता और संभ्रम का भाव भी उनके पदों में नहीं मिलता. परन्तु वे मनुष्य मात्र को समान मर्यादा का अधिकारी मानते थे. जातिगत, कुलगत, आचारगत श्रेष्ठता का उनकी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं था. सम्प्रदायप्रतिष्ठा के भी वे विरोधी जान पड़ते हैं. परन्तु फिर भी विरोधाभास यह है कि उन्हें हजारों की संख्या में लोग सम्प्रदाय विशेष के प्रवर्त्तक मानने में ही गौरव अनुभव करते हैं.
जीवन दर्शन : कबीर परमात्मा को मित्र, माता, पिता और पति के रूप में देखते हैं. वे कहते हैं
हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरियातो कभी कहते हैं 
हरि जननी मैं बालक तोराउस समय हिंदु जनता पर मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था. कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सुनियोजित किया जिससे मुस्लिम मत की ओर झुकी हुई जनता सहज ही इनकी अनुयायी हो गयी. उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके. इससे दोनों सम्प्रदायों के परस्पर मिलन में सुविधा हुई. इनके पंथ मुसलमान-संस्कृति और गोभक्षण के विरोधी थे. कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे. अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका आदर होता है.
धर्मगुरु: कबीर धर्मगुरु थे. इसलिए उनकी वाणियों का आध्यात्मिक रस ही आस्वाद्य होना चाहिए, परन्तु विद्वानों ने नाना रूप में उन वाणियों का अध्ययन और उपयोग किया है. काव्यरूप में उसे आस्वादन करने की तो प्रथा ही चल पड़ी है. समाजसुधारक के रूप में, सर्वधर्मसमन्वयकारी के रूप में,हिन्दूमुस्लिमऐक
विधायक के रूप में भी उनकी चर्चा कम नहीं हुई है. यों तो हरि अनंत हरिकथा अनंता, विविध भाँति गावहिं श्रुतिसंताके अनुसार कबीर कथित हरि की कथा का विविध रूप में उपयोग होना स्वाभाविक ही है, पर कभीकभी उत्साहपरायण विद्वान गलती से कबीर को इन्हीं रूपों में से किसी एक का प्रतिनिधि समझकर ऐसीऐसी बातें करने लगते हैं जो कि असंगत कही जा सकती हैं.
कबीर का दर्शन यानि गागर में सागर: कबीर के बारे में कहा जाता है कि वे कवि थे, समाज सुधारक थे. वस्तुत: कबीर किसी व्यक्ति नहीं वरन एक दर्शन का नाम है जो गागर में सागर समेटे हुए हैं. अध्यात्म का तत्वज्ञान उनका मुख्य विषय है. अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को कबीर ने अपने पदों में इतनी कुशलता से समाहित किया है कि ज्ञानी व खोजी बुद्धि को उतने में ही सब कुछ समझ आ जाता है, जबकि साधारण मस्तिष्क भी उसमें सामान्य तुकबंदी का रस ले लेता है.
                                                              

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

                  राशि के अनुसार हो खान-पान
जन्म के समय ग्रहों और राशियों की स्थिति निश्चित होती है, जिसे जन्मपत्रिका कहते हैं। जन्मपत्रिका हमारा भाग्य तय करता है। जीवन में क्या होगा यह जन्मपत्रिका में पहले से तय होता है। हमारा खान-पान हमारी जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डालता है। हमारी सोच भी हमारे खान-पान से ही तय होती है। आपने सुना ही होगा, जैसा खाए अन्न वैसा होए मन। बारह राशियों के लोगों को अपनी अच्छी हैल्थ और प्रोस्पेरिटी के लिए क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, इसके लिए कुछ जरूरी टिप्स
मेष आपको दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने का बेहद शौक है, इसलिए उनके साथ डाइन आउट भी करते हैं। जरूरी नहीं कि बाहर का खाना आपकी सेहत पर अच्छा असर डाले। आपका डाइजेस्टिव सिस्टम अच्छा है फिर भी अगर आप अपने खाने में रेशेदार फल-सब्जी, मसूर की दाल, गेहूं, गोंद की खाने लायक चीजें, जौ, कैर सांगरी, बीन्स, साबुदाना का प्रयोग बढ़ा दें। गन्ना, पान, पालक, मटन, नमक, तिल से थोड़ा परहेज रखें या इनकी मात्रा कम कर दें तो आपके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन आएगा। अलसी, मटर, मूंग की दाल और चावल आपके लिए हैल्थ परेशानी तो बढ़ाएंगे ही, एनिमीज की श्रंखला भी लम्बी कर देंगे।
वृष आपको खाने में हाई क्वालिटी बारीक बासमती चावल का प्रयोग ज्यादा करना चाहिए। गुलकंद, गेहूं, पौधों से प्राप्त होने वाले फल एवं सब्जियों का ज्यादा यूज करना चाहिए। अगर आप पर लोन ज्यादा हो गया है या फिर शत्रु ज्यादा हो गए हैं तो आप उड़द की दाल, राजमा, जौ, सरसों से परहेज रखें। नमक, तिल, अनाज का दान करें जिससे प्रोस्पेरिटी बढ़ेगी। 
मिथुन आप खाने-पीने के बेहद शौकीन हैं। सभी तरह का लजीज खाना काफी पसंद करते हैं। लेकिन अगर आप सोशल सर्किल में तनाव पसंद नहीं करते तो आपको गन्ना, पान, मटन, पालक जैसी चीजों से परहेज रखना होगा। साथ ही सभी प्रकार के अनाज ठंडे प्रदेशों में पैदा होने वाली सभी फल, सब्जियां, जल में पैदा होने वाली सब्जियां और सी फूड्स आपके लिए लाभकारी होंगे। आम, केला, चीकू, टमाटर, शिमला मिर्च, मतीरा, भिंडी, जौ, ज्वार का दान आपको सक्सेस दिलाएगा। 
कर्क आपका व्यक्तित्व आकर्षक है उसे और आकर्षक बनाने के लिए खाने में बासमती चावल, केला, बथुआ, हरी पत्तेदार मेथी, हरा धनिया, पुदिना, पालक सभी रसीले फल, आलू, गाजर, प्याज, शलजम, अदरक, जमीकंद, तेजपत्ता व नारियल का उपयोग बढ़ा दें। लोन्स और शत्रु कम करने के लिए नमक, तिल, गेहूं, बाजरा, ज्वार, जौ का दान करें। सभी सी फूड्स से परहेज रखें। 
सिंह चावल, दालें, गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा, दलिया, गुड़ आपके लिए लाभदायक हैं। खजूर, अंजीर, नारियल, आम, केला, अमरूद, अनार, चीकू, पपीता, टमाटर, भिंडी, शिमला मिर्च, मतीरा, खरबूजा जैसी चीजें आपके लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं। आपको सी फूड्स से भी सावधान रहना होगा। हो सके तो इनसे परहेज रखें। ऐसा करने पर आपको अवश्य लाभ होगा।
कन्या आपका डाइजेस्टिव सिस्टम काफी नाजुक है। खान-पान में जरा सी भी लापरवाही आपको परेशान कर देती है। आपको जिन चीजों का खाना लाभदायक है वे हैं अलसी, मटर, बीन्स, गेहूं, मूंग की दाल,चावल, जौ,ज्वार आदि। कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें खाना आपको पसंद है मगर अनजाने में आपकी टेंशन का कारण बन जाती हैं। वे हैं सभी प्रकार के सी फूड्स, पपीता, आम, अनार, गुलकंद, फूलगोभी। इनसे परहेज रखें तो बेहतर है। रेशेदार फल, सब्जी, मसूर की दाल, गेहूं, जौ, बाजरा का दान करने से आपको मन की शांति व लाभ मिलेगा। 
तुला उड़द की दाल, राजमा, जौ, गेहूं, सरसों का प्रयोग अधिक करने से आपका सैल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ेगा और आपको दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। अगर आपको लगता है कि फाइनेंशियल स्ट्रैस बढ़ रहा है और कोई आपकी मदद नहीं कर रहा तो आप सभी प्रकार के सी फूड्स, ऑलिव ऑयल, कोकोनट ऑयल, किसी भी प्रकार के फिश ऑयल का प्रयोग कदापि न करें। बारीक रेशेदार फल, सब्जियां, सभी प्रकार के फूल, गेहूं, बारीक चावल, जौ का दान करें। 
वृश्चिक आप काफी सकारात्मक व्यक्ति हैं। एंथुजिआज्म आपका स्ट्रॉन्गेस्ट पॉइंट है। लेकिन जीवन में कभी अगर आप खुद को कमजोर महसूस करें तो गन्ना, पान, कटहल, नीबू, मतीरा, खरबूजा, पपीता, पालक, बथुआ, मटन का प्रयोग बढ़ा दें। मसूर, मैदा, गोंद, साबुदाना, कनेर, बींस, जौ का ज्यादा इस्तेमाल हैल्थ ईश्यूज भी बढ़ाएगा साथ ही शत्रु भी। चावल, केला, घास, सभी फल, आलू, प्याज, गाजर शलजम, अदरक, जमीकंद को दान करने से लाभ मिलेगा। 
धनु आप खान-पान के मामले में काफी संयमित हैं। आप स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखते हैं। लेकिन फिर भी स्वयं की उन्नति के लिए आपको गेहूं, सभी प्रकार की दालें, चावल, जौ, ज्वार, बाजरा, नमक, तिल का प्रयोग ज्यादा करना चाहिए। रेशेदार फल, सब्जियां, सभी प्रकार के फूल, गेहूं, बारीक बासमती चावल व जौ का दान करने से रोगों तथा आर्थिक बोझ से मुक्ति मिलेगी। तेज मसाले, तेजपत्ता, नारियल, आलू, प्याज, गाजर, शलजम, जमीकन, केला का प्रयोग कम करें। 
मकर आपको अपनी पर्सनालिटी निखारने के लिए नारियल, आम, केला, चीकू, पपीता, अमरूद, अनार, पेड़ों पर लगने वाले फल-सब्जियां, बेलों पर लगने वाले फल-सब्जियां जैसे शिमला मिर्च, भिंडी, मतीरा, खरबूजा जैसी चीजें या वो जिसमें आयरन होता हो उन सभी खाने वाली चीजों का यूज ज्यादा कर देना चाहिए। सर्दी में पैदा होने वाली फल-सब्जियां, सभी सी-फूड्स से परहेज रखें व इनका इस्तेमाल कम करें। कोशिश करें कि नॉन-वेजिटेरियन डाइट आप कम से कम लें वो आपके लिए तकलीफदायक हो सकते है। तेज मसाले, गुड़ आपको परेशानी दे सकते है।
कुंभ आप सभी प्रकार के सी फूड्स को दिल खोलकर एन्जॉय कर सकते हैं। अगर आप इनके शौकीन हैं तो ये आपकी पर्सनैलिटी भी इम्प्रूव करेंगे। अपनी फाइनेंशियल प्रॉब्लम कम करने के लिए चावल, केला, तेज पत्ता, नारियल का इस्तेमाल कम करें। मेंटल स्ट्रैस और टेंशन कम करने के लिए अलसी, मटर, मूंग की दाल का इस्तेमाल कम करें। 
मीनआपको अल्कोहल से दूर ही रहना चाहिए। यह सीधा आपके डाइजेस्टिव सिस्टम के साथ ही आपकी पसनैलिटी को भी हार्म करता है। सभी प्रकार के वेज या नॉनवेज, सी फूड्स तो आप खा सकते हैं मगर चिकन और मटन न खाएं। मैदा, गुड़, बेसन, आपको फिजिकल प्रॉब्लम दे सकते हैं। उड़द, राजमा, जौ, गेहूं का दान करें। इससे आपको लाभ मिलेगा। आप यूं भी हल्का खाना खाएं। इससे आपको लाभ होगा।



गुरुवार, 16 दिसंबर 2010


                                                 
बीकानेर की स्थापना व माँ करणीमाता

बीकानेर कि स्थापना विक्रम संवत 1543 में राव बीका ने शनिवार के दिन अक्षय दि्तीया को कि थी|गुजरात में जुनागढ़ शहर का नाम है मगर बीकानेर में किले का नाम जूनागढ है| बीकानेर के छठे शाशक राजा रायसिंह ने 17 फरवरी 1589 को इसका निर्माण कार्य आरभ्भ करवाया था|यह छः बषौ में बनकर पूर्ण हुआ|इसके बाद की सोलह पीढीयो के शाशकों ने इसका विकास करवाया|इसके भीतरी भाग में बने महल उन राजाओं की कला प्रियता के साक्ष है|
यह किला 40 फुट ऊंची तथा 14.5 फुट चौडी विशाल दीवारों से घिरा है|
जुनागढ में प्रवेश के लिए पूर्व में कर्ण पोल व पश्चिम में सिंह पोल बनें हुएं है|अब कर्ण पोल से प्रवेश किया जा सकता है|दोनों ही विशाल द्धारो के फाटक लोहे की जंगी कीलों से लैस है जिन्हें तोडना असभंव था|
महलों की और जाने के लिए सुरज पोल से प्रवेश करना होता है जो जैसलमेरी पीले पत्थर से बना है व इस राजा 360 फुट गहरा रामसर कुंआ है महाराजा गंगासिंह इसी कंए का पानी पीते थे तथा विदेश में भी यही पानी लेकर जाते थे|
बीकानेर से करीबन 30 क.म.दुर देशनोक गा्म में करणीमाता का मंन्दिर बना हुआ है जो कि चुहो का मंन्दिर के नाम से विश्व में विख्यात है|बीकानेर राजघरानों की माँ करणीमाता को कुल देवी के रूप पुजते है|वाहा के राजा-महाराज कोई भी शुभारंभ करने से पहले माँकरणी का आशीर्वाद लेकर आगे बढते थे|यहाँ पर देश-विदेश से श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है|यह एक चमत्कारी मंन्दिर है यहाँ पर कोई भी दशर्न करके अपने आप को भाग्यशाली समझता हैं|यहाँ पर सफेद चुहे का दर्शन होना ही आदमी खुद को तकदीर वाला मानता है एसी जनमानस की भावना है|यहां पर चुहो को काबा बोलते है| जब कभी समय मिला तो देशनोक की करणी मात के बारे में यही पर विस्तार से जानकारी दुगी |

शनिवार, 27 नवंबर 2010

महालक्ष्मी और उनके विभिन्न स्वरूप
इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुखमय जीवन बिताना चाहता है धन की कामना हर व्यक्ति के मन में होती है| दुनियावी भौतिक सुख-साधनों को एकत्रित करने का एक मात्र आधार धन है और धन की देवी महालक्ष्मी है| प्रत्येक व्यक्ति धन के पीछे भागता है और धनार्जन का हर सभ्भव प्रयास करता है धन की देवी की पूजा अर्चना के पीछे यही कामना प्रबल होती है|
वस्तुतः श्री में ही लक्ष्मी समाहित है| यह क्षीं ही महालक्ष्मी है- ब्रह्मा अभिन्न शक्ति|परमात्मा, जीवात्मा व जगत बा्हय रूप में पृथक-पृथक होने बावजूद उस पर ब्रहमा द्धारा निर्मित उसी के अंश रूप है| इसी प्रकार ईश्वर के तीन रूप ब्रह्मा, विष्णु व महेश जहां साकार रूप में अलग-अलग है, वही तत्व रूप में ये तीनों ही उस आदिशक्ती के विविध  रूप है| इस आदिशक्ती को कोई योगमाया कहता है, तो कोई आधशक्ति, कोई ईश्वर| जगदम्बा, परमेश्वर, भगवती, भवानी योगमाया आदि| अनन्त नाम इस आधशक्ति के ही है पृथक-पृथक होने बावजूद इन सभी का अर्थ एवं अभिप्राय एक है| सृष्टि का आधार और संचालिका होने के कारण ही इस शक्ति का एक सटीक नाम महालक्ष्मी भी है| यही कारण है कि महालक्ष्मीजी की पुजा-उपासना करने पर सभी देवी-देवताओं की अरचना भी स्वयं ही हो जाती है|
भारतीय धर्मग्रन्थों में प्रायः समस्त देवों के साथ उनकी शक्तियों को उनकी अधागिनी के रूप में निरूपित किया गया है| भगवान विष्णु के साथ मातेश्वरी महालक्ष्मीजी और शिवजी के पार्वती तो आप है ही महासरस्वती, सीता, राधा, दक्षपुत्री सती, काली तथा महा दुर्गा भी आप ही है| रिद्धी-सिद्धी, बा्हाविधा, शुद्धबा्हा्, शास्त्राकार आदि जितनी भी शक्तिया है, वे इस आधशक्ति के ही विविध रूप है |पंच महाशक्ति नामक पांच प्रमुख शक्तियां, दस महाविधाएं तथा नवदुर्गाएं भी आपके ही विविध रूप है, तो अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, लक्ष्मी, महालक्ष्मी, सरस्वती, महाकाली, गौरा, ललिता आदि भी आप ही है| महषि मेधा ने भारत या हिन्दू धर्म के प्रमुख आधार गन्थ दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में ही इस आद्दशक्ति की वर्णन करते हुए स्पष्ट किया है कि यह शक्ति ही इस संसार चक्र की संचालिका, निर्मात्री और क्षय करने वाली है|
संसारी जन आपको क्षी लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, कमला आदि नामों से पुजते है इस रूप में आप गौर वर्ण, स्वर्ण सा दमकता मुख, चतुभुजी शांत स्वभाव, हाथ में कमला पुष्प व धन कलश लिए कमल पुष्प पर विराजमान है|
पीले वस्त्रों में वैजयन्ती पुष्प व मणियों की माला सुशोभित क्षी लक्ष्मी का वाहन परमज्ञानी पक्षीराज उल्लू है|
हम उस महालक्ष्मी को जानते है जो समस्त सिद्धियो की उपलब्धी कराती हैं वह देवी सबको सद्प्रेरणा प्रदान करें|
माया के पुजारियों के लिए ये महामाया व योग माया है तो ज्ञान पिपासु इन्हें महाविधा और कमला आदि नामों से संबोधित करते है|
ये अपनी चार भुजाओं में कमल, अंकुश, पाश और शंख धारण किए हुए है|
ये ही कमला, इन्दरा, विष्णुप्रिया, मातृ श्री, कुल श्रीराज श्री, और सौभाग्य श्री है|
लक्ष्मी जी को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्तम के सौलह मंत्रों का जाप विशेष फलदायी है| श्री लक्ष्मी सूक्त, कमला स्तोत्रम, श्री लक्ष्मी हदय स्तोत्र, श्री लक्ष्मी सहस्त्र नाम स्तोत्र के पाठ चमत्कारी प्रभाव रखते है| प्रायः समस्त पाठ संस्कृत में है अतः मंत्रों के उच्चारण में शुद्धता होनी परमावश्यक है|
लक्ष्मी अपने आठ स्वरूपों में हमें वरण करती है-आदिलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैयलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, विधालक्ष्मी, धनलक्ष्मी|
लिंग पुराण के अनुसार घर में किया गया जप का फल साधारण होता है जबकि नदी के तट पर किया गया जप का फल अनन्त कहा गया है, पवित्र स्थलो, देवालयों, परवत शिखर, बाग-बगीचे अथवा समुद्र तट पर यह लाभ लाखो गुना बढ़ जाता है| धुव्र तारे या सूर्य के अभिमुख होकर और गौ, अग्नी, दिपक या जल के सामने जप करने का फल श्रेष्ठ कह गया है| घर में जप करते समय साधना स्थल को पूर्णतः स्वच्छ व सात्विक बनाए रखना भी परमावश्यक है