शनिवार, 27 नवंबर 2010

महालक्ष्मी और उनके विभिन्न स्वरूप
इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुखमय जीवन बिताना चाहता है धन की कामना हर व्यक्ति के मन में होती है| दुनियावी भौतिक सुख-साधनों को एकत्रित करने का एक मात्र आधार धन है और धन की देवी महालक्ष्मी है| प्रत्येक व्यक्ति धन के पीछे भागता है और धनार्जन का हर सभ्भव प्रयास करता है धन की देवी की पूजा अर्चना के पीछे यही कामना प्रबल होती है|
वस्तुतः श्री में ही लक्ष्मी समाहित है| यह क्षीं ही महालक्ष्मी है- ब्रह्मा अभिन्न शक्ति|परमात्मा, जीवात्मा व जगत बा्हय रूप में पृथक-पृथक होने बावजूद उस पर ब्रहमा द्धारा निर्मित उसी के अंश रूप है| इसी प्रकार ईश्वर के तीन रूप ब्रह्मा, विष्णु व महेश जहां साकार रूप में अलग-अलग है, वही तत्व रूप में ये तीनों ही उस आदिशक्ती के विविध  रूप है| इस आदिशक्ती को कोई योगमाया कहता है, तो कोई आधशक्ति, कोई ईश्वर| जगदम्बा, परमेश्वर, भगवती, भवानी योगमाया आदि| अनन्त नाम इस आधशक्ति के ही है पृथक-पृथक होने बावजूद इन सभी का अर्थ एवं अभिप्राय एक है| सृष्टि का आधार और संचालिका होने के कारण ही इस शक्ति का एक सटीक नाम महालक्ष्मी भी है| यही कारण है कि महालक्ष्मीजी की पुजा-उपासना करने पर सभी देवी-देवताओं की अरचना भी स्वयं ही हो जाती है|
भारतीय धर्मग्रन्थों में प्रायः समस्त देवों के साथ उनकी शक्तियों को उनकी अधागिनी के रूप में निरूपित किया गया है| भगवान विष्णु के साथ मातेश्वरी महालक्ष्मीजी और शिवजी के पार्वती तो आप है ही महासरस्वती, सीता, राधा, दक्षपुत्री सती, काली तथा महा दुर्गा भी आप ही है| रिद्धी-सिद्धी, बा्हाविधा, शुद्धबा्हा्, शास्त्राकार आदि जितनी भी शक्तिया है, वे इस आधशक्ति के ही विविध रूप है |पंच महाशक्ति नामक पांच प्रमुख शक्तियां, दस महाविधाएं तथा नवदुर्गाएं भी आपके ही विविध रूप है, तो अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, लक्ष्मी, महालक्ष्मी, सरस्वती, महाकाली, गौरा, ललिता आदि भी आप ही है| महषि मेधा ने भारत या हिन्दू धर्म के प्रमुख आधार गन्थ दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में ही इस आद्दशक्ति की वर्णन करते हुए स्पष्ट किया है कि यह शक्ति ही इस संसार चक्र की संचालिका, निर्मात्री और क्षय करने वाली है|
संसारी जन आपको क्षी लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, कमला आदि नामों से पुजते है इस रूप में आप गौर वर्ण, स्वर्ण सा दमकता मुख, चतुभुजी शांत स्वभाव, हाथ में कमला पुष्प व धन कलश लिए कमल पुष्प पर विराजमान है|
पीले वस्त्रों में वैजयन्ती पुष्प व मणियों की माला सुशोभित क्षी लक्ष्मी का वाहन परमज्ञानी पक्षीराज उल्लू है|
हम उस महालक्ष्मी को जानते है जो समस्त सिद्धियो की उपलब्धी कराती हैं वह देवी सबको सद्प्रेरणा प्रदान करें|
माया के पुजारियों के लिए ये महामाया व योग माया है तो ज्ञान पिपासु इन्हें महाविधा और कमला आदि नामों से संबोधित करते है|
ये अपनी चार भुजाओं में कमल, अंकुश, पाश और शंख धारण किए हुए है|
ये ही कमला, इन्दरा, विष्णुप्रिया, मातृ श्री, कुल श्रीराज श्री, और सौभाग्य श्री है|
लक्ष्मी जी को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्तम के सौलह मंत्रों का जाप विशेष फलदायी है| श्री लक्ष्मी सूक्त, कमला स्तोत्रम, श्री लक्ष्मी हदय स्तोत्र, श्री लक्ष्मी सहस्त्र नाम स्तोत्र के पाठ चमत्कारी प्रभाव रखते है| प्रायः समस्त पाठ संस्कृत में है अतः मंत्रों के उच्चारण में शुद्धता होनी परमावश्यक है|
लक्ष्मी अपने आठ स्वरूपों में हमें वरण करती है-आदिलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैयलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, विधालक्ष्मी, धनलक्ष्मी|
लिंग पुराण के अनुसार घर में किया गया जप का फल साधारण होता है जबकि नदी के तट पर किया गया जप का फल अनन्त कहा गया है, पवित्र स्थलो, देवालयों, परवत शिखर, बाग-बगीचे अथवा समुद्र तट पर यह लाभ लाखो गुना बढ़ जाता है| धुव्र तारे या सूर्य के अभिमुख होकर और गौ, अग्नी, दिपक या जल के सामने जप करने का फल श्रेष्ठ कह गया है| घर में जप करते समय साधना स्थल को पूर्णतः स्वच्छ व सात्विक बनाए रखना भी परमावश्यक है